ताकि कोई पढ़ने से छूट ना जाये

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केरल के एक छोटे से कब्बे अझिकोड में रविंद्रन बच्चों को फिजिक्स और उनकी पत्नी शोभनवल्ली मैथ्स पढ़ाती थीं। दोनों को एक बेटा हुआ और उन्होंने नाम रखा बायजू। शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे माता-पिता से उसे गणित और विज्ञान की शिक्षा विरासत में मिली। आज उसी बच्चे ने एडटेक स्टार्टअप की दुनिया में इतिहास रच दिया है। बायजू ने कालीकट विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद यूके स्थित शिपिंग फर्म ’पैन ओशन’ के लिए एक सर्विस इंजीनियर के रूप में काम किया और साल 2003 में 2 महीने की छुट्टी पर इंडिया वापस आ गए। तब उन्होंने उस समय एमबीए की तैयारी कर रहे अपने दोस्तों को पढ़ाया। चूंकि उन्हें भी अपने माता-पिता जैसे पढ़ाने का शौक था तो उनके दोस्तों को इससे काफी मदद मिली। बायजू जब अपने दोस्तों को पढ़ा रहे थे तो उन्हें कोर्स आसान लगा। उन्होंने सोचा कि क्यों न मैं भी पेपर दूँ। जिसके बाद उन्होंने पेपर दिया और पहली बार में ही 100 पर्सेंटाइल ले आये। अपनी इस सफलता पर बायजू को ही यकीन नहीं हो रहा था, इसलिए, उन्होंने दोबारा परीक्षा दी और इस बार भी उनके 100 पर्सेंटाइल आये। उनके बारे में जानने के बाद दो लोग भारी तादाद में उनसे पढ़ने आने लगे। बायजू ने पढ़ाना भी शुरू कर दिया।

उस समय एडटेक की दुनिया के इस बेताज बादशाह को भी नहीं पता होगा कि दो छात्रों से शुरुआत करने वाले बायजू जल्दी ही करोड़ों छात्रों के भविष्य के आधार बनेंगे। साल 2007 का दौर था, बायजू की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि उनकी क्लास छोटी पड़ने लगी। ऐसे में उन्हें इतनी अधिक संख्या में स्टूडेंट्‌स को पढ़ाने में परेशानी होने लगी। कई बार तो उन्हें ऑडीटोरियम में क्लास लेनी पड़ती थी। लगातार बढत़ी मांग और लोकप्रियता के कारण साल 2009 में बायजू 9 शहरों में जाकर क्लास लेने लगे थे। लेकिन, यह इतना आसान नहीं था और काफी दिक्कत भरा काम था। अपनी इसी दिक्कतों का हल निकालने के लिए उन्होंने उसी दरम्यान वीडियो के जरिये पढ़ाना शुरू कर दिया।

साल 2011 के पहले तक बायजू केवल इंजीनियरिंग या एमबीए की एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी ही कराते थे। लेकिन, 2011 में उन्होंने  ‘थिंक एंड लर्न’ नाम से अपना एक एप लॉन्च किया, जिसके माध्यम से अब कक्षा एक से बाहरवीं तक के छात्रों को पढ़ाना शुरू किया गया।  उस समय इस कैटेगरी के छात्रों की संख्या 25 करोड़ से भी अधिक थी। ऐप को लॉन्च करने के बाद बायजू ने पढ़ाई को आसान और मजेदार बनाने का लक्ष्य बनाया। ऑनलाइन क्लासेस देने के लिए एक्सपर्ट टीचर्स की भर्तियां शुरू की गईं और कठिन विषयों को आसान भाषा में समझाने के लिए ग्रफिक्स का इस्तेमाल किया जाने लगा। विषयों को आसान भाषा में समझाने के लिए 5 से 20 मिनट तक के वीडियो बनाने शुरू किए गये।

साल 2013 में कंपनी को मिले शानदार रिस्पोंस के बाद उन्हें फंडिंग मिलनी भी शुरू हो गई। सबसे पहले आरिन कैपिटल ने उन्हें 66 करोड़ की फंडिंग की थी।  जिसके बाद एप की लोकप्रियता और बढ़ गई। साल 2015 तक करोड़ों लोग इससे जुड़ चुके थे और तभी बायजू ने कुछ बदलाव करके बायजूस एप की लॉन्चिंग कर दिया। बायजूस के लॉन्च होने के केवल तीन महीने बाद ही एप से 20 लाख से अधिक छात्र जुड़ चुके थे और ये संख्या तेजी से बढ़ती जा रही थी। कंपनी की ग्रोथ देखकर साल 2016 में उन्हें 921 करोड़ का फंड मिला। कुछ ही सालों में बायजूस ने अपनी बेहतरीन लर्निंग स्किल के दम पर करोड़ों छात्रों को एप से जोड़ लिया। फिर बायजूस ने कंपनी की मार्केटिंग को एक व्यापक आकार देते हुए अपने ब्रांड को पूरी दुनिया तक पहुँचा दिया।

2019 में कंपनी ने 184 करोड़ रुपये सिर्फ विज्ञापनों पर खर्च किये। कंपनी ने अपना दायरा बढ़ाने के लिए पिछले कुछ सालों में लगभग 8 कंपनियों का अधिग्रहण किया। ये ऐसी कंपनियां थी जो BYJU को तगड़ा कॉम्पिटीशन दे सकती थीं, इसलिए इन्हें खरीद लिया। इनमें ग्रेडअप, स्कॉलर, एपिक गेम्स, ग्रेट लर्निंग जैसे स्टार्टअप भी शामिल थे। कोविड के दौरान इस कंपनी का मुनाफा बढ़ा क्योंकि ऑनलाइन लर्निंग का क्रेज कोविड में अपने चरम पर था।

रविन्द्रन बायजू की एक ट्यूशन ट्यूटर से अरबपति बनने की कहानी जितनी दिलचस्प है, उतनी ही दिलचस्प उनकी लव स्टोरी भी है। रविन्द्रन की पत्नी दिव्या गोकुलनाथ उनकी स्टूडेंट थीं। उसके बाद वे उनकी बिजनेस पार्टनर बनीं और फिर लाइफ पार्टनर बन गईं।  रविन्द्रन ने बायजू की स्थापना जिन 6 स्टूडेंट्‌स के साथ मिलकर की थी, उनमें से दिव्या भी एक थीं। दिव्या गोकुलनाथ आज BYJU की को-फाउंडर होने के साथ-साथ एक एजुकेटर भी हैं। इसके अलावा, वह भारत में जेंडर पे गैप (लैंगिक वेतन अंतर) को कम करने की वकालत करने में भी एक्टिव रही हैं। वह अपनी नई सीखों के आधार पर ब्लॉग लिखना भी पसंद करती हैं। 1987 में बेंगलुरु में जन्मीं दिव्या के पिता अपोलो हॉस्पिटल्स में नेफ्रोलॉजिस्ट हैं, जबकि उनकी मां ’दूरदर्शन’ में प्रोग्रामिंग एक्जीक्यूटिव रही हैं। दिव्या ने अपनी स्कूली शिक्षा ’फ्रैंक एंथोनी पब्लिक स्कूल’ से पूरी की। इसके बाद उन्होंने बेंगलुरु के आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बायोटेक्नोलॉजी में बीटेक किया।

हाल ही में बायजूस के बोर्ड Aakash का आईपीओ लाने की दी मंजूरी दी है।  अगले साल के मिड में आईपीओ के लॉन्च होने की सम्भावना है। यह ऐलान ऐसे समय में किया गया है, जब बायजूस के सामने एक लोन के तिमाही ब्याज के तौर पर 4 करोड़ डॉलर (खरीब 330 करोड़ रुपये) के भुगतान की समय सीमा आ खड़ी हुई है। बायजूस ने यह लोन नवंबर 2021 में लिया था। 31 मार्च, 2023 की स्थिति के अनुसार बायजूस की वैल्यूएशन लगभग 8.2 बिलियन डॉलर के आसपास है।

बायजूस के सफर की प्रमुख उपलब्धियाँ

  • 2017 में अभिनेता शाहरुख़ खान को अपना ब्रांड एंबेसडर बनाया। जिससे कंपनी का मुनाफ़ा और बढ़ने लगा ।
  • 2018 में वैल्यूएशन एक अरब डॉलर पार हो गई।
  • 2019 में कंपनी इंडियन क्रिकेट टीम की जर्सी तक पहुंच गई. यानी उनकी ऑफिशियल स्पॉन्सर बन गई।
  • 2020 में कंपनी का वैल्यूएशन 10.5 बिलयन डॉलर था, जिसके बाद दुनिया की सबसे बड़ी एडटेक स्टार्टउप बन गई।
  • 2020 में 2210 करोड़ में व्हाईटहेट जूनियर का अधिग्रहण कर कंपनी ने एक और मुकाम हासिल किया।
  • 2021 में पेटीएम को पछाड़ा।
  • 2021 में आकाश एजुकेशन सर्विसेस को 7300 करोड़ में ख़रीदा।
  • 2022 में फीफा वर्ल्ड कप की आधिकारिक स्पॉन्सर बनी।
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