दुनिया में बžती बिजली की माँग के साथ बढ़ रहा कॉर्बन उत्सर्जन

जलवायु परिवर्तन का असर इतना अव्यवस्थित और गहरा होता जा रहा है कि अमेरिका के एक हिस्से में जंगलों में आग और दूसरी तरफ बा़ढ आती है। एक के बाद एक चक्रवाती तूफान आए, इसके अलावा और भी पर्यावरणीय घटनाएं हुई हैं, जिनसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अब जाहिर हो चुके हैं। मूलभूत आर्थिक गतिविधियों, जैसे बिजली उत्पादन, परिवहन में पर्यावरण संरक्षित रखने और जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए कदम उठाना बहुत जरूरी है। मगर, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदमों में समानता होनी चाहिए क्योंकि किसी को भी एक दूसरे से अलग करके नहीं देखा जा सकता। ऐसे में एनर्जी ट्रॉजिशन या ऊर्जा रूपांतरण आज के समय की मांग है। इसका सरोकार सिर्फ कार्बन न्यूनीकरण से नहीं है, बल्कि इसका संबंध जलवायु के प्रति सतत अर्थव्यवस्था और लोगों से है। २०२१ में तेजी से ब़ढते उत्सर्जन को दुनिया भर में खतरे की घंटियों की गूंज की शक्ल में देखना चाहिए।
वैश्विक तापमान को १.५ डिग्री तक सीमित करने के लिए इस दशक में बहुत तेज एनर्जी ट्रॉजिशन महत्वपूर्ण है। इसकी जरूरत दुनिया भर में हो रही बिजली की खपत और उसके उत्पादन के तरीकों से स्पष्ट होती दिख रही है। एम्बर द्वारा प्रकाशित ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी रिव्यू में ६३ देशों के बिजली के आंक़डाें का विश्लेषण किया गया है, जो बिजली की मांग के ८७ज्ञ्र् का प्रतिनिधित्व करते हैं। रिपोर्ट से पता चलता है कि २०२१ की पहली छमाही में वैश्विक बिजली क्षेत्र के उत्सर्जन में वापस उछाल आया, जो निम्न स्तर से ब़ढ गए हैं, जिससे उत्सर्जन अब पूर्व महामारी के स्तर से ५ज्ञ्र् अधिक है। महामारी से पहले के स्तर की तुलना में २०२१ की पहली छमाही में वैश्विक बिजली की मांग में भी ५ज्ञ्र् की कद्धि हुई, जो ज्यादातर पवन और सौर ऊर्जा (५ज्ञ्र्) से पूरी हुई, लेकिन उत्सर्जन – गहन कोयला बिजली (४३ज्ञ्र्) में भी कद्धि हुई। गैस लगभग अपरिवर्तित रही, जबकि हाइड्रो और न्यूक्लियर में मामूली गिरावट देखी गई। पहली बार, पवन और सौर ने वैश्विक बिजली के दसवें हिस्से से अधिक उत्पन्न किया। किसी भी देश ने बिजली क्षेत्र में सही मायने में ‘ग्रीन रिकवरी” हासिल नहीं की है। कई देशों ने ”बिल्ड बैक बेटरह्ण (वापस निर्माण बेहतर) करने और अपनी अर्थव्यवस्थाओं को एक नए ग्रीन नॉर्मल (सामान्य हरित स्थिति) में आगे ब़ढाने का संकल्प लिया है। पर विश्लेषण से पता चलता है कि किसी भी देश ने अभी तक अपने बिजली क्षेत्र के लिए सही मायने में ‘ग्रीन रिकवरी” हासिल नहीं की है, जिसमें बिजली की उच्च मांग और कम सीओटू उत्सर्जन के लिए बिजली क्षेत्र में संरचनात्मक परिवर्तन शामिल हैं। हालांकि नार्वे व रूस ‘ग्रीन रिकवरी” क्वाडेंट में दिखते हैं, यह अस्थायी कारकों के कारण है। इसमें बिजली क्षेत्र में महत्वपूर्ण संरचनात्मक सुधार के बजाय, बेहतर बारिश से उच्च हाइड्रो बिजली उत्पादन का हाथ ज्यादा है।
अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और कोरिया सहित कई देशों ने पूर्व – महामारी के स्तरों की तुलना में कम बिजली क्षेत्र से सीओटू उत्सर्जन हासिल किया, जिसमें पवन और सौर ने कोयले की जगह ली, लेकिन ऐसा केवल दबी हुई बिजली की मांग में कद्धि के संदर्भ में हुआ। बिजली की ब़ढती मांग वाले देशों में भी उच्च उत्सर्जन देखा गया, यहां कोयला उत्पादन के साथ – साथ पवन और सौर में भी कद्धि हुई। ये ‘ग्रीन रिकवरी” देश ज्यादातर एशिया में हैं, जिनमें चीन, बांग्लादेश, भारत, कजाकिस्तान, मंगोलिया, पाकिस्तान और वियतनाम शामिल हैं। इन देशों ने अभी तक उत्सर्जन और बिजली की मांग में कद्धि को एक दूसरे से अलग नहीं किया है, जो बहुत जरूरी है ।

(ये लेखिका के निजी विचार हैं)

अभ्युदय वात्सल्यम डेस्क