देश की प्रतिष्ठित एग्रो केमिकल कंपनी यूपीएल की विकास यात्रा

यूपीएल लिमिटेड के अध्यक्ष एवं प्रबन्ध निदेशक रज्जू भाई श्रॉफ की औद्योगिक यात्रा अत्यंत रोचक है। श्री श्रॉफ ने अपनी उत्कृष्ट योग्यता एवं कार्य कुशलता के माध्यम से भारतीय रासायनिक उद्योग जगत में यूपीएल को शीर्ष पर पहुँचा दिया है। कच्छ के एक छोटे से गाँव के उद्यमी परिवार में जन्में रज्जू भाई श्रॉफ बचपन से ही रसायन एवं रसायन शास्त्र में दिलचस्पी रखते थे। श्री रज्जू श्रॉफ ने मुंबई विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में स्नातक की शिक्षा प्राप्त कर यू.के. में एक संयंत्र में मर्करी साल्ट के निर्माण की एक उपन्यास प्रक्रिया की स्थापना की और ब्रिटिश कंपनी द्वारा इसके लिए रॉयल्टी का भुगतान भी किया गया। १९५७ में किसी भी भारतीय के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि थी। इसके तुरंत बाद उन्होंने रेड फॉस्फोरस में विशेषज्ञता हासिल की और जल्दी ही अन्य रसायनों जैसे एल्यूमीनियम फॉस्फाइड (पयूमिगेंट) और कृषि के लिए जिंक फास्फाइड (कृन्तनाशक) का उत्पादन शुरू कर दिया। आज भी ८५ वर्ष की आयु में श्री श्रॉफ १० घंटे काम करते हैं।

८५ वर्षीय श्रॉफ ने माचिस में इस्तेमाल होने वाले लाल फास्फोरस को बनाने के लिए साल १९६९ में यूपीएल कंपनी की स्थापना की। यह पहली देसी कंपनी थी जो विदेशी कंपनी की तुलना में सस्ता फास्फोरस बना रही थी। वह अभी भी अपने परिवार के साथ लगभग २७ज्ञ्र् हिस्सेदारी रखते हैं। उनके बेटे जय और विक्रम अब कंपनी का प्रबंधन संभालते हैं। श्रॉफ के एक फैसले से २०१९ में कंपनी की आमदनी में जोरदार इजाफा हो गया। कंपनी ने फरवरी, २०१९ में अमेरिका की एरिस्टा लाइफसाइंस को ४.२ अरब डॉलर में खरीद लिया। इसके जरिए यूपीएल फसल सुरक्षा उत्पादों में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी उत्पादक बन गई है। इसी बीच अमेरिका-चीन के बीच शुरू हुए ट्रेड वार के चलते अमेरिका में एग्रो केमिकल्स के लिए चीन से आयात करना महंगा पड़ने लगा।

श्रॉफ ने शानदार रणनीतिक सूझबूझ से अपनी खरीदी हुई अमेरिकन कंपनी के जरिए सीधे अमेरिकी बाजार में पैह्ण बना ली। इसके चलते महज चार महीने में ही यानी जून २०१९ तक उत्तरी अमेरिका में कंपनी की बिक्री ६ प्रतिशत बž गई। यही नहीं, कंपनी को दूसरा फायदा चीन से भी हुआ। चीन ने ट्रेड वार के चलते सोयाबीन के लिए दूसरे देशों का रुख किया। चीन ने ब्राजील से सोयाबीन का आयात शुरू किया तो वहां भी किसानों को चीन की डिमांड पूरा करने के लिए भारतीय कंपनी से एग्रो केमिकल उत्पाद खरीदने पड़े। कंपनी को हुए इसी दोहरे फायदे की वजह से जुलाई, २०१९ में शेयर मार्केट में कंपनी का प्रति शेयर ७०९ रुपए तक पहुंच गया जबकि इससे एक साल पहले तक यह ४५० से ५०० रुपए तक रहता था। ५ नवंबर २०१९ को भी कंपनी का शेयर ५९९ रुपए तक रहा।

६० के दशक में विदेशी कंपनियां माचिस के लिए लाल फास्फोरस का प्लांट ४ करोड़ रुपए में लगाती थीं। श्रॉफ ने महज चार लाख रुपए में यह काम कर दिखाया। स्वीडिश कंपनी विमको की माचिस तब काफी लोकप्रिय थी। विमको ने आरोप लगाया कि इतनी कम राशि में प्लांट लगाना संभव ही नहीं है। जरूर सुरक्षा नियमों और प्रदूषण मानकों का उल्लंघन हुआ होगा। तकनीकी विकास महानिदेशक और राष्ट्रीय अनुसंधान और विकास कॉर्पोरेशन को जांच करने के लिए वापी आना पड़ा। टीम को प्लांट एकदम सुरक्षित मिला। लिहाजा, इस घटना के ”ीक एक साल बाद श्रॉफ को लघु उद्योग में नए प्रयोग के लिए राष्ट्रपति शील्ड से सम्मानित किया गया।

श्रॉफ बताते हैं कि इस घटना के बाद उन्होंने कृषि क्षेत्र में रसायनों के इस्तेमाल से पैदावार बžाने की कोशिश की। तब हरित क्रांति के लिए जरूरी था कि सस्ते कीटनाशकों का उत्पादन हो। श्रॉफ ने कीटनाशकों के लिए रिसर्च कर नई फैक्ट्रियों की स्थापना की। आज १३० से अधिक देशों में प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष स्तर पर कंपनी कारोबार करती है। रज्जू श्रॉफ बताते हैं कि शुरूआती दिनों में परिवार को यह समझाना भी मुश्किल था कि वापी में कोई उद्योग शुरू हो सकता है। वह भी तब जबकि परिवार की इंग्लैंड जैसे देशों में फैक्टियां हो। श्रॉफ बड़ी मुश्किल से परिवार को वापी में लाल फास्फोरस के निर्माण के लिए मना पाए। शुरूआत में वापी में रिक्शा या टैक्सी तक नहीं थी।

यूपीएल लिमिटेड ने हाल ही में गुजरात स्थित झगडिया में एक अत्याधुनिक विनिर्माण इकाई खोलने की घोषणा की। यह इकाई क्लीथोडिम का उत्पादन करेगी, जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार की फसलों में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। क्लेथोडिम को यूपीएल के उत्पाद पोर्टफोलियो में ऐरिस्टा लाइफसाइंस के अधिग्रहण के माध्यम से सम्मलित किया गया था। दुनिया भर के किसान उच्च फसल सुरक्षा समाधानों की निरंतर और विश्वसनीय आपूर्ति के लिए यूपीएल पर भरोसा रखते हैं। यूपीएल क्लीथोडिम का उत्पादन बžाने के लिए उत्साहित है। यह इकाई पूरी तरह से स्वचालित है और डीसीएस नियंत्रित है, जिसमें रासायनिक उद्योग में नवीनतम प्रौद्योगिकियां शामिल हैं। इन-हाउस उत्पादन के माध्यम से, यूपीएल अपनी विनिर्माण क्षमताओं को बžाते हुए क्लीथोडिम को व्यापक रूप से बाजार में उपलब्ध कराएगा।

यूपीएल लिमिटेड ने लोगों को जानलेवा कोरोना वायरस के खतरे से बचाने के लिए पीएम केयर्स फंड में ७५ करोड़ रुपए का योगदान दिया है। इसके साथ ही यह कंपनी सुरक्षा उपकरण भी मुहैया करवा रही है, ताकि इस कोरोनावायरस की समस्या से लड़ा जा सके। इसके अलावा इस कंपनी ने गुजरात में वापी स्थित २ शिक्षा संस्थानों के परिसर को क्वारंटीन सेंटर बनाने की व्यवस्था भी कर ली है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर इनको इस्तेमाल में लाया जा सके।
यूपीएल लिमिटेड इस वायरस के विरुद्ध लड़ाई में अपने संसाधनों और विशेषज्ञताओं के साथ सहायता करने के लिए पूरे दृž निश्चय के साथ खड़ी है। यूपीएल द्वारा इस बीमारी को रोकने के लिए लगभग २०० आधुनिक यांत्रिक छिड़काव मशीनों और २२५ मेंबर्स का स्टाफ काम में संलग्न कर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किए प्रयासों में सहायता की जा रही है। यूपीएल की टीमें ज्यादातर अस्पतालों, सड़कों, पुलिस स्टेशनों से लेकर रेलवे स्टेशनों और नगर निगमों आदि विभिन्न सार्वजनिक और निजी स्थानों में संक्रमण नाशक को स्प्रे कर रही है ताकि स्थानीय प्रशासन की सहायता सुनिश्चित हो और सार्वजनिक स्थानों को संक्रमण मुक्त बनाया जा सके। कंपनी अब तक गुजरात, तेलंगाना, महाराष्ट्र हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में ११.५ लाख लीटर कीटाणुनाशक घोल का छिड़काव कर चुकी है। इसके अलावा अन्य राज्यों में भी छिड़काव की तैयारी जारी है और हैंड सैनिटाइजर भी तैयार किया जा रहा जिससे इस समस्या को रोकने में मदद मिले।

आलोक रंजन तिवारी