परोपकार ही श्रेष्ठ धर्म है…..

यह ध्रुव सत्य है कि मानवीय गुणों से सुसम्पन्न व्यक्ति को ही सच्चे अर्थों में मानव कहा जा सकता है। यदि उपरोक्त मानवीय गुण हम में नहीं हैं तो हम मानव होते हुए भी सच्चे अर्थों में मानव नहीं हैं। मानव मात्र में मानवता की उपस्थिति ही उसे मानव बनाती है, महामानव बनाती है।

मनसा-वाचा-कर्मणा मानवता को समर्पित मानव जीवन स्वयं की परम शांति का माध्यम हो सकता है, विशाल मानव समाज के लिए प्रेरक और अनुकरणीय हो सकता है। चेतना सम्पन्न मानव मात्र से ही अपेक्षित है कि वह मानव के आभूषण सद्‌गुणों से स्वयं को सुसज्जित कर संसार में मानवता को गौरवान्वित करे, महिमा मण्डित करे। प्रेम, दया, क्षमा, त्याग, न्याय, धर्म, उदारता, परोपकार, सेवा, विनम्रता, सहजता, सरलता आदि मानवीय सद्‌गुण ही मानव के सच्चे आभूषण हैं, गहने हैं। यदि मानवीय गुणों से सुसम्पन्न मानव समाज का स्वरूप सुस्थापित हो जाय तो जिसे हम राम राज्य कहते हैं वह राम-राज्य स्थापित हो सकता है।

यह ध्रुव सत्य है कि मानवीय गुणों से सुसम्पन्न व्यक्ति को ही सच्चे अर्थों में मानव कहा जा सकता है। यदि उपरोक्त मानवीय गुण हम में नहीं हैं तो हम मानव होते हुए भी सच्चे अर्थों में मानव नहीं हैं। मानव मात्र में मानवता की उपस्थिति ही उसे मानव बनाती है, महामानव बनाती है।

हमारे पास संसार की कोई भी वस्तु (स्थिति, अवस्था, ज्ञान, विवेक, धर्म, द्रव्य आदि) यदि हमारी आवश्यकता से अधिक है तो उसमें संसार के जरूरतमंद प्रत्येक व्यक्ति का, प्राणी का हिस्सा है और हमारा कर्तव्य भावना के साथ उसका यथोचित वितरण ही न्यायकारी है, कल्याणकारी है। उदाहरण स्वरूप हम सुस्वादिष्ट व्यंजनों का आश्वादन लें किन्तु यदि कोई भूखा, बीमार, घायल है तो उसकी भी मदद हमें करनी चाहिए। यही मानवता है, यही हमारा धर्म है। दुनिया में गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, स्वास्थगत समस्याएं एवं अशांति को दूर करने में हमें अपना मानवोचित गरिमानुरूप कर्तव्य निभाना चाहिए।

जो गरीबों की सहायता करे, वही अमीर है, जो दीन दुःखियों की सेवा करे वही श्रेष्ठ मानव है, जो निर्बलों की सहायता करे वही बलवान है और जो अज्ञानियों में ज्ञान का प्रकाश करे वही ज्ञानी है। विश्व परिवार के सभी सदस्यों का परम दायित्व है कि वे विश्व हित में अपने वे सभी कर्त्तव्य निभायें जो हम अपने निजी परिवार के प्रति निभाते हैं- उनकी सेवा के लिए, खुशहाली के लिए, शांति के लिए।

आनन्द, हर्षोल्लास एवं दीपोत्सव के पावन-पर्व दीपावली के शुभ अवसर पर चराचर जगत के मंगल भविष्य की शुभ कामनाओं सहित- एक महान कवि की- जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना- अंधेरा…..। मेरी भी यही कामना है। सभी को दीपोत्सवी की हार्दिक शुभकामनाएं!

अभ्युदय वात्सल्यम डेस्क