मानवता की प्रतिमूर्ति, दानशील – मेहरबाई

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सर दोराब जी की पत्नी मेहरबाई एक सहृदय, उदार एवं दूरदर्शी महिला थीं। देश के महिला आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, वे अग्रगणी रहीं। भारत की महिलाओं की शिक्षा एवं कल्याण हेतु आप हमेशा तत्पर रहीं। आप बॉम्बे प्रेसीडेन्सी वीमेंस कौंसिल एवं बाद में नेशनल कौंसिल ऑफ वीमेंस की संस्थापक सदस्यों में से एक थीं।

मेहरबाई ने परदा प्रथा, छूआछूत मिटाने तथा भारतीय महिलाओं को उच्च शिक्षा देने हेतु आंदोलन किए। इन सामाजिक और कल्याणकारी कार्यों के लिए आपके पति सर दोराब जी का सदैव समर्थन रहा। देश में लड़कियों की शिक्षा हेतु वे कितना संजीदा थीं, एक उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है। मेहरबाई ने लड़कियों की शिक्षा के सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य में सर्वेक्षण के लिए इंग्लैण्ड से एक सर्वेक्षक बुलाया था। वह सर्वेक्षण एक वर्ष तक हुआ, बाद में वह पुस्तक के आकार में प्रकाशित हुआ।
वह सर्वेक्षण बहुत ही महत्वपूर्ण था और वह महिलाओं को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढऩे के लिए काफी मददगार साबित हुआ और आगामी अनेक वर्षों तक महिलाओं की शिक्षा के लिए मार्गदर्शन का कार्य किया। अमेरिका के बॉटल क्रीक कालेज में उन्होंने एक बहुत ही प्रभावशाली एवं सारगार्थित भाषण दिया था। उनका वह भाषण भारत और भारतीयों के सम्बन्ध में था, जिसमें भारतीय जीवन एवं समाज के प्रति सम्पूर्णता के साथ सूक्ष्म विश्लेषण था।

अपने पति सर दोराब जी की तरह उन्हें भी खेलों से प्रेम था। आप टेनिस की कुशल खिलाड़ी थीं और अनेक पारितोषिक भी प्राप्त किये थे। पति- पत्नी ने मिलकर अनेक आल इण्डिया चैम्पियन शिपों में प्रतिभाग किया था और सफलता प्राप्त की थी।

आप भारतीय टेड क्रॉस की एक्टिव मेंबर भी थीं। युध्द काल में मेहरबाई ने चंदा और अन्य संसाधन इकट्ठा कराने में भी काफी परिश्रम किया था।

मेहरबाई के अप्रतिम योगदान के सम्मान में किंग जार्ज पंचम नें उन्हें खुद सम्मानित किया था।
१८ जून, १९३१ को ल्यूकेमिया से मानवता की मिशाल, नारी उत्थान की अलख जगाने वाली लेडी मेहरबाई की मृत्यु हो गयी। दोराब जी द्वारा मेहरबाई की स्मृति में लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की गयी। रक्त से सम्बाधित विभिन्न प्रकार की बीमारियों के अध्ययन हेतु उक्त ट्रस्ट का गठन किया गया था। १९३२ में ट्रस्ट फंड स्थापित किया गया जो अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य करने, आपदा राहत तथा अन्य मानवीय उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जाना था। इस ट्रस्ट का नाम सर दोराब जी टाटा ट्रस्ट रखा गया। कहते हैं कि उक्त ट्रस्ट में आपने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्तियों को लगा दिया था।

शिक्षा के क्षेत्र में दिया गया आप द्वारा योगदान अति महत्वूपर्ण है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी को एक लेबोरेटरी इक्विपमेंट हेतु आपने काफी आर्थिक मदद दी।

पुणे स्थित भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इन्स्टीट्यूट को भी संस्कृति भाषा के अध्ययन हेतु आपने आर्थिक सहायता प्रदान की।

३ जून, १९३२ को महान व्यक्तित्व जो सदैव मानवता की सेवा में लगा रहा, की मृत्यु हो गयी।
इंग्लैण्ड के बुकवुड सेमेट्री में उनकी धर्म पत्नी मेहरबाई की समाधि के पास ही उनकी भी समाधि बनी हुई है। पति- पत्नी मानवता के साधक, उपासक और पुजारी थे। दोनों को शत- शत नमन्‌।

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